नेहा की कलम से...
इस छोटी सी दुनिया में आपको मिलेंगी मेरी रचनाएं और कुछ अपनों के दिल से निकली बातें, यादें जिन्हें संजो कर रखना अच्छा लगता है.....
6/30/2019
काश ये कविता मैंने लिखी होती ...
2/05/2018
kulvender sufiyana aks: ये इश्क बड़ा पुराना है
1/19/2018
वो जैसा चाहता है
हरदम साथ है मेरे
बड़ी ये बात है
हो ना पाए कोई भी
मैं उसको मानता दिल से
12/13/2016
बनाए अपना होम ऑफिस
2/17/2016
दोहे 3
निखर निखर है निखरता, बेहद इसका दाम।
हीरा यूं ही ना बना, करता है अभिमान।।
सागर जितना गहन है, सरल ना अनुमान।
मनुज की छिपी क्षमता, रत्नों की ज्यों खान।।
आंगन के बीच चमकें, रोशन हो घर द्वार।
दीप फैलाय रोशनी, सबको दे उपहार।।
12/29/2015
दोहे 2
अपने मन की सब कहे, दुजे का ना ध्यान ।
अपने माथे जब पड़ी, तब मिल पाया ज्ञान ।।
आंगन में धूप उतरे, नया सवेरा लाय।
कर्मरत जो रहे सदा, वो ही अवसर पाय।।
सबको जिसकी खोज है, कहते जिसको ज्ञान।
योग्यता से ही मिलता, पाना ना आसान ।।
लेखक - नेहा मैथ्यूज
7/15/2015
परोपकार
वृक्ष के झुरमुट को जब जब
पवन ने दिया झिंझोड
भीतर छुपे फलों को उसने
फिर फिर दिया तोड ,
फलों का स्वाद चखा जिसने भी
उसने कहा वाह
ऐसा स्वाद् फिर पाने को
पूछी उसने राह ।
उड़ता आया नन्हा पंछी
उसने ध्यान लगाया
वृक्ष फलों की इस मिठास का
उसने राज बताया ,
डाली और तने में उनके
हमने संसार सजाया
और देखो कैसे उन ने
हर पल साथ निभाया ।
गर्मी से आहत राही को
पेडों ने दी छाँह ,
बेगानी सी दुनिया में
पहचानी सी बाँह ।
समय के साथ खुद के विचार में
वही स्वाद् जब पाया ,
समझ गया वह परोपकार फिर
औरो को समझाया ।
आलोचना से ना घबराना
वो है सच्ची साथी ,
जैसे पवन के एक झोंके से
फलों को मिल गई ख्याती ।