एक गुलाब फिर खिला है
तोड़े गए फूलों के बीच
उसको कुछ समय मिला है
पौधा प्यार से रहा है सींच
कलियाँ शायद सोच रही है
हमको भी कुछ समय मिलेगा
फूल को जैसा देख रही है
धूप छाँव भर पेट मिलेगा
या फिर लिया जाएगा तोड़ ?
नहीं ! हम भी लहलहाएँगी
अपनी बगियाँ को छोड़
यूँ ही न चली जाएँगी, महकाएँगी
रंगो से सजाएँगी , स्वप्न के यह थे, पल बस चंद
आह! फिर हुआ वही जिसका डर था, महक रह गयी मंद
एक बेहतरीन कविता। बहुत अच्छा लिख रही हैं आप।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद !
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