2/03/2015

एक गुलाब फिर खिला है


एक गुलाब फिर खिला है 
तोड़े गए फूलों के बीच 
उसको कुछ समय मिला है 
पौधा प्यार से रहा है सींच 

कलियाँ शायद सोच रही है 
हमको भी कुछ समय मिलेगा 
फूल को जैसा देख रही है 
धूप छाँव भर पेट मिलेगा 

या फिर लिया जाएगा तोड़ ?
नहीं ! हम भी लहलहाएँगी 
अपनी बगियाँ को छोड़ 
यूँ ही न चली जाएँगी, महकाएँगी 

रंगो से सजाएँगी , स्वप्न के यह थे, पल बस चंद 
आह!  फिर हुआ वही जिसका डर था, महक रह गयी मंद





                                                                                                            

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