समय चलता है दोस्तों
अपनी ही लय में
तुम भी सुर मिला लो
ना रहो चिन्ता या भय में
फिर से लौटना
बनकर विजेता
क्या कठिन है ?
ईश्वर के लिखे में
क्या नहीं रात दिन है ?
पंछी की मिसाल
ये कवि जो
दे रहा है
उसका कहा
तुमसे भी
कुछ ना कुछ जुड़ा है
उसको उड़ान
फिर से देखो
मिल गई है
मंजिल सामने ही थी
मगर लगती नई है
क्या ये पहले तय था
या अब हुआ है
ईश्वर के लिखे का
जान लो
अपना मजा है।
घर को लौटना
कितना सुखद
कितना भला है
खोई राह
फिर से खोजना
फिर क्यों खला है।
जादु सा ये कैसा
आज कोई चला है
इसके सार में देखो
मुझको क्या मिला है ,
रुक रुक कर
जो चल रही थी
दौड़ती है
मुश्किल रास्तों को
अब नही वो
छोड़ती है
अनुभव से समझ आएगी
ये जो जिन्दगी है
ईश्वर के लिखे को
मानना ही बन्दगी है।
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