1/13/2015

जलप्रपात की यात्रा [संस्मरण ]

जलप्रपात को प्रत्यक्ष रूप से देखना यह मेरा पहला ही अनुभव था । कितना सुरम्य,कितना अभिभूत कर देने वाला दृश्य है यह। झरने तक पहुँचने के लिए जितनी सीढियाँ उतरते उतना ही वो समीप आने के लिए बाध्य करता। दूधिया झरने की धाराए अनगिनत बूँदों में  बदल जब पहली बार हम पर पडी तो  लगा मानो बरसात हो रही है फिर समझ आया  कि यह बारिश का आभास मात्र है।
सीढियाँ उतरते वक्त  हम बिना किसी दिक्कत उस  विशाल प्राकृतिक वाद्य के सुरों की ओर तथा उस मंच पर झूमते अठखेलियाँ  करते लोगों के इस अप्रतिम दृश्य की ओर एक  प्रशंशक की भाँति खींचे चले गए  पर्यटकों को झरने में खतरनाक फिसलन भरी चट्टानों के आस पास सहजता से खड़ा देख ऐसा लगता कि क्या इन्हे डर नहीं। उनमे हमारे साथी सदस्य भी खडे विभिन्न पोज़ में तस्वीरें  खींचा रहे है , भई  हम में तो इतना दुःसाहस नही। एक दो बार तो वहां खड़े होने की कल्पना मात्र से ही सिहर उठे। बार बार उनकी ओर वापिस आने को हाथ हिला रहे है पर किसी को मॉडलिंग से फुर्सत कहां।
अब हमारे भीतर का नौसीखियां फोटोग्राफर बाहर आने को कुलबुलाने लगा। इधर उधर से पढ़े फोटोग्राफी के ज्ञान को जैसे परखने का मौका मिल गया। बैकग्राउंड, पर्सपेक्टिव, लाइट इफ़ेक्ट  कई सारे वर्ड्स आइडियाज बनकर दिमाग में घूम  रहे है। बहुत तस्वीरें ली और अपने परिवार के  सदस्यों को दिखाकर उनका चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रहे है पर देखिए कोई समझता ही नहीं , कोई तारीफ का एक शब्द भी नही कहता।
हमने हार मानकर कैमरा दूसरे को पकडा दिया और प्रकृति को शान्त मन से निहारना ही ठीक समझा। वाह क्या दृश्य है मन प्रफुल्लित हो गया।
देखते ही देखते लौटने का वक्त हो आया पर लौटते वक्त चढ़ाई ऐसी कि पिंडलियों की सारी मांसपेशियां मानो थककर वही पसर जाने को मजबूर होने लगी। और फिर कोई ठोर देखकर हम पैर पसार वहीँ बैठ गए कोई परवाह नहीं कि हमारे चेहरें के हावभाव अगर किसी ने देख लिए तो सदा धीर गंभीर दिखने वाला हमारा चेहरा अपने कुछ और भाव सामने ले आएगा जिसे देखकर किसी की भी हँसी छूट पडे । कुछ सम्भलते ही इस बात का एहसास हुआ, तब तुरंत ही नजरें बाकि  लोगों की तरफ गई ,बाकि सभी का भी यही हाल देखकर एक हल्की सी परेशान मुस्कान ने एक दूसरे को समझ लिया। फिर कुछ देर विश्राम कर निकल पडे अगली मंजिल की ओर।

                                                 
                          

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