7/15/2015

परोपकार

वृक्ष के झुरमुट को जब जब
पवन ने दिया झिंझोड
भीतर छुपे फलों को उसने
फिर फिर दिया तोड ,
फलों का स्वाद चखा जिसने भी
उसने कहा वाह
ऐसा स्वाद् फिर पाने को
पूछी उसने राह ।
उड़ता आया नन्हा पंछी
उसने ध्यान लगाया
वृक्ष फलों की इस मिठास का
उसने राज बताया ,
डाली और तने में उनके
हमने संसार सजाया
और देखो कैसे उन ने
हर पल साथ निभाया ।
गर्मी से आहत राही को
पेडों ने दी छाँह ,
बेगानी सी दुनिया में
पहचानी सी बाँह ।
समय के साथ खुद के विचार में
वही स्वाद् जब पाया ,
समझ गया वह परोपकार फिर
औरो को समझाया ।
आलोचना से ना घबराना
वो है सच्ची साथी ,
जैसे पवन के एक झोंके से
फलों को मिल गई ख्याती ।

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