सम्पूर्ण सृष्टि करें नमन
कितना स्नेहिल तेरा मन
तुने दिया है यह जीवन
तुझको करती हूँ अर्पण |
नन्ही सी किलकारी से
तु कितनी खुश हो जाती थी
ऐ माँ तेरी हर लोरी
मन में मिठास दे जाती थी |
नन्हे नन्हे क़दमों को
जब तु चलना सिखलाती थी
ऐ माँ तेरे क़दमों से
मैं अपने कदम बढाती थी |
तेरे हाथों से खाया जो
प्यार भरा हर एक कौर
पेट भर भी जाये तो
जी कहता है माँ और और |
तेरी ममता की मुस्कान
मेरे दिल को छु जाती है
ऐ माँ तेरी हर एक सीख
अमिट छाप दे जाती है |
घनी धुप में छाँव वृक्ष की
सुख का आभास कराती है
ऐ माँ तेरी ममता भी
कुछ ऐसा अहसास कराती है |
सम्पूर्ण सृष्टि करें नमन
कितना स्नेहिल तेरा मन
तुने दिया है यह जीवन
तुझको करती हूँ अर्पण |
बहुत ही बढ़िया लिखा है नेहा जी आपने.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ... कितनी प्यारी कविता रची है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है....
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंMother is always great .you have written excellent poem .best of luck .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यार है आपकी भावनाएं....
जवाब देंहटाएं---------
सलमान से भी गये गुजरे...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
माँ को समर्पित बहुत प्यारी कविता लिखी है आपने, नेहा जी .
जवाब देंहटाएंनेहा जी आप सुंदर लिखती हैं बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंमनमोहक ब्लॉग और बहुत प्यारी रचना - हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंमाँ की ममता को
जवाब देंहटाएंढेरों ढेरों शब्दों में भी
बयान नहीं किया जा सकता
आपकी कविता द्वारा किया गया प्रयास
निश्चित रूप से सराहनीय है ...